परमपूज्य प्रेममूर्ति परमसंत Dr.Narendra Kumar जी..

विवेक हमें ये बतलाता है कि,

मनुष्य शरीर भोगों, बुरे विचारों, दूसरो की कमी निकालने के लिए नही बना है

जिव्हा स्वाद चखने के लिए नही बनी है !

ये शरीर आत्मा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए दिया गया है

विवेक के प्रकाश से ही ज्ञान होता है कि हमारे अन्दर आत्मा है , और ये शरीर आत्मा का मन्दिर हैइसे पवित्र रखें , अधिक और अशुद्ध खाएं, ये विवेक ज्ञान देता है

विवेक ही मोह और भ्रम दूर करता है !

और तभी गुरु चरणों में सच्चा अनुराग उत्पन्न होता है
"बिन सत्संग विवेक होई ,राम कृपा बिनु सुलभ सोई "

बिना विवेक के प्रकाश के ,मनुष्य ज्ञान वैराग्य की बात नही कर सकता

बिना विवेक जाग्रत हुए ,मानव जाग्रत अवस्था में नही आता
विवेक को जाग्रत करने वाले गुरु सदगुरु कहलाते हैगुरु चरणों में बैठेने से ही जागरण होता है

जिस समय आप गुरु वाणी को सुनेंगे,उसी पल जन्मो के पाप ,ताप भाग जायेगे इस से तुम्हारा मोह विवेक में बदल जाएगामोह को अब प्रेम पूरा करेगा. ये प्रेम विवेक के साथ जाग जाएगा .

अब आपको एक दुखों की जगह एक नया आनंद अनुभव होगा

परम हितेषी गुरु जीव को विवेक प्रदान कर ,भवबंधन से मुक्ति प्रदान करते हैं

विवेक के नेत्र खुलते ही , एकता का आनंद आता है !

हर में एक को देखो और उस से आगे उन सब में उस (गुरु) आत्मा को देखो

ये ज्ञान ही विवेक का ज्ञान हैविवेक की सच्ची पहचान ये है , कि इससे मोह दूर हो जाता है

विवेक प्राप्त करने के बाद उसे पता चलता है कि
मुझे क्या त्याग करना है और क्या रखना है और इस के बाद वो अपने आपको बहुत हल्का महसूस करता हैविवेक हमें बतलाता है कि केवल शरीर है मन, बुद्धि, और, केवल आत्मा,
हम इन सब की एक मिलोनी है ! विवेक में अंधविश्वास समाप्त हो जाता है
विवेकी पुरूष कभी किसी में बुराई नही देखते और अपनी बुराई को चुन चुन कर बाहर निकालदेते हैं

सच्चा विवेक मानव का ये है , अपने दुखों और बंधंनो को देख सके
जीवन मुक्त हो प्रभु मिलन का आनंद ले सके जिनकी विवेक दृष्टि (दिव्य दृष्टि )
खुल जाती है वे ही इन का अनुभव करते हैं .अनुभव को ही विवेक कहते है. ह्रदय दृष्टि या अन्तर दृष्टि भी इसी को कहते हैं

जिनका विवेक खुल गया है,उनके लिए संसार सुंदर खेल है और हर्ष तथा आनंद में व्यतीत हो जाएगा
हमारी ध्यान साधना चिंतन सब विवेक खोलने के लिए ही हैं. विवेक एक शक्ति एक प्रकाश है ,

इस के बिना मानव संसार में नही रह सकता इश्वर को प्राप्त कर सकता है

ये इश्वर को प्राप्त करने कि पहली सीढ़ी हैजीवन की सफलता के लिए विवेक को प्राप्त करो

2 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

achchha laga narayan narayan

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है ,आपके लेखन के लिए मेरी शुभकामनाएं ................